दीपावली की सीख: "पटाखे जलाना पैसों में आग लगाना है"

 दीपावली की सीख: "पटाखे जलाना पैसों में आग लगाना है"



कहानी की शुरुआत

रवि एक छोटे से गाँव में अपने माता-पिता और दादा-दादी के साथ रहता था। गाँव के लोग एक-दूसरे के बेहद करीब थे, और त्यौहारों पर सब मिल-जुलकर उत्सव मनाते थे। दीपावली का त्यौहार नजदीक आ रहा था, और हर साल की तरह इस बार भी पूरे गाँव में तैयारियाँ जोरों पर थीं। बच्चे नए कपड़े खरीदने, मिठाई बनाने और खासकर पटाखों को लेकर बेहद उत्साहित थे।

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रवि के दोस्तों को पटाखों का बहुत शौक था, और वे हर बार दीपावली पर ढेर सारे पटाखे खरीदते और रात भर जलाते। पटाखों का शोर, रंग-बिरंगी रोशनी और वह खुशी, ये सभी चीजें हर साल उनके दीपावली का हिस्सा बन चुकी थीं। लेकिन इस बार रवि के मन में एक सवाल आया। उसने सोचा, "क्या वाकई पटाखे जलाना सही है? क्या हम अपने पैसों का सही उपयोग कर रहे हैं?"


दादा जी की सीख

रवि ने यह सवाल अपने दादा जी से पूछा। दादा जी गाँव के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति माने जाते थे और हर कोई उनकी बात को गंभीरता से लेता था। रवि के सवाल सुनकर दादा जी मुस्कुराए और बोले, "बेटा, दीपावली का मतलब केवल पटाखे जलाना नहीं है। यह त्यौहार हमें अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की प्रेरणा देता है। असल में यह त्यौहार आत्मा के अंदर छिपी अच्छाई को बाहर लाने का पर्व है।"


दादा जी ने आगे कहा, "पहले के समय में लोग दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाते थे और अपने घरों को सजाते थे। पटाखों का चलन तो बाद में शुरू हुआ, लेकिन असली खुशी तो दीयों में और अपनों के साथ समय बिताने में होती है। पटाखे जलाना तो जैसे पैसों में आग लगाना है, जो थोड़े समय के बाद खत्म हो जाते हैं और केवल धुआँ छोड़ जाते हैं।"

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रवि को दादा जी की यह बात बहुत गहरी लगी। उसने सोचा कि यदि वह इस बार पटाखों पर पैसे खर्च करने के बजाय इन पैसों का किसी और तरीके से उपयोग करे, तो वह दीपावली को और भी सार्थक बना सकता है।


रवि की योजना

इस बार, रवि ने तय कर लिया कि वह पटाखों पर पैसे बर्बाद नहीं करेगा। उसने अपने दोस्तों को भी यह समझाने का फैसला किया कि पटाखों से असल में केवल शोर और प्रदूषण ही होता है। लेकिन जब उसने यह बात दोस्तों से कही, तो कुछ दोस्तों ने उसका मजाक उड़ाया और बोले, "रवि, क्या तुम वाकई पटाखे नहीं जलाओगे? दीपावली पटाखों के बिना कैसी होती है?"


रवि ने सबको शांत किया और समझाने लगा, "सोचो, हम इस बार पटाखों पर जो पैसे खर्च करने वाले हैं, क्यों न उन्हें किसी अच्छे काम में लगाया जाए? जैसे कि किसी गरीब परिवार के बच्चों के लिए मिठाई और कपड़े खरीद लें। इससे हमें खुशी मिलेगी, और त्योहार का असली मतलब भी पूरा होगा।"


उसके कुछ दोस्त उसकी बात से सहमत हो गए, लेकिन कुछ अब भी पटाखे जलाने के पक्ष में थे। आखिरकार, रवि और उसके कुछ दोस्तों ने पटाखों के लिए रखे पैसे इकट्ठे किए और उनका उपयोग गाँव के जरूरतमंद लोगों की सहायता करने के लिए करने का निर्णय लिया।


समाज के प्रति जिम्मेदारी का अहसास

रवि और उसके दोस्तों ने तय किया कि इस दीपावली पर वे कुछ ऐसा करेंगे जिससे किसी की मदद हो सके। उन्होंने गाँव के उन गरीब बच्चों के लिए नए कपड़े खरीदे जो त्योहार पर नए कपड़े नहीं खरीद पाते थे। इसके अलावा, उन्होंने कुछ मिठाई भी खरीदी और उसे बच्चों में बाँट दिया।


जब उन्होंने उन बच्चों को नए कपड़े और मिठाई दी, तो उनकी आँखों में जो खुशी और चमक थी, वह देखकर रवि और उसके दोस्तों का दिल खुश हो गया। वह अनुभव उन्हें शब्दों में नहीं बता सकता था। यह पहली बार था जब उन्होंने महसूस किया कि दीपावली की असली खुशी दूसरों के साथ खुशियाँ बाँटने में है, न कि पैसों को धुएँ में उड़ाने में।



पर्यावरण और स्वास्थ्य की सुरक्षा

रवि ने अपने दोस्तों को यह भी समझाया कि पटाखों से न केवल पैसे बर्बाद होते हैं, बल्कि यह हमारे पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक होते हैं। पटाखों से निकलने वाला धुआँ वातावरण को प्रदूषित करता है और कई बार लोगों को साँस लेने में तकलीफ भी होती है।

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पटाखों का शोर भी पशुओं के लिए हानिकारक होता है। गाँव में कई लोग पालतू जानवर रखते हैं, और पटाखों की आवाज से वे बहुत डर जाते हैं। रवि ने अपने दोस्तों को बताया कि हमारे द्वारा किए गए छोटे-छोटे कदम पर्यावरण को बचाने में मददगार हो सकते हैं।


समाज में बदलाव की शुरुआत

रवि और उसके दोस्तों की इस पहल का पूरे गाँव में असर पड़ा। लोगों ने देखा कि बच्चे पटाखों के बजाय अपने पैसे का सही उपयोग कर रहे हैं। यह देख गाँव के बुजुर्गों ने भी इस बात का समर्थन किया और सबने मिलकर एक नया नियम बनाया कि इस बार गाँव में कोई पटाखे नहीं जलाएगा।


इस बार, पूरे गाँव में सिर्फ दीये जलाए गए, मिठाई बाँटी गई, और एकता का संदेश फैलाया गया। गाँव के लोगों ने महसूस किया कि दीपावली का त्यौहार खुशियाँ बाँटने का है, न कि शोर और प्रदूषण फैलाने का। इस कदम ने पूरे गाँव को एक नई दिशा दी, और सभी ने संकल्प लिया कि आने वाले सालों में वे इसी तरह दीपावली मनाएंगे।


शिक्षा और जागरूकता का प्रसार

रवि की कहानी गाँव के अन्य बच्चों और युवाओं तक भी पहुँची। उन्होंने भी इस बात को समझा कि दीपावली पर पटाखे जलाना वास्तव में पैसों में आग लगाने जैसा है। धीरे-धीरे, आसपास के गाँवों में भी रवि की यह पहल चर्चा का विषय बन गई। लोग उसे एक प्रेरणा के रूप में देखने लगे और उसकी इस सोच की प्रशंसा करने लगे।


इस पहल के माध्यम से रवि ने यह सिद्ध कर दिया कि किसी भी प्रकार का बदलाव समाज में लाने के लिए उम्र की आवश्यकता नहीं होती। यदि आपमें कुछ नया करने का जुनून और सही दिशा में काम करने की इच्छा है, तो आप भी समाज में एक सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।

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अपने आप को खुश करने का नया तरीका

इस अनुभव के बाद, रवि और उसके दोस्तों ने एक नई परंपरा की शुरुआत की। अब हर साल दीपावली पर वे पटाखों पर खर्च करने की बजाय उन पैसों को समाज सेवा में लगाते थे। यह न केवल उन्हें खुशी देता, बल्कि उन्हें यह भी महसूस कराता कि वे समाज में एक छोटा सा योगदान दे रहे हैं।


अब दीपावली पर रवि और उसके दोस्त नए कपड़े पहनकर दीयों की रोशनी में नाचते-गाते, मिठाइयाँ बाँटते, और जरूरतमंदों की मदद करते। उन्होंने यह सीखा कि वास्तविक खुशी चीजों में नहीं, बल्कि हमारे अपने अंदर होती है। जब हम किसी की मदद करते हैं, तो हमें जो सुकून और संतोष मिलता है, वह किसी भी और चीज से बड़ा होता है।


     निष्कर्ष: असली खुशी बाँटने में है, बर्बादी में नहीं

    रवि की यह कहानी हमें दीपावली के वास्तविक अर्थ की समझ देती है। यह हमें सिखाती है कि त्यौहार केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के हर व्यक्ति के लिए है। पटाखे जलाकर कुछ ही क्षणों की खुशी हासिल करना वास्तव में बेकार है, जबकि वही पैसे यदि किसी की मदद में खर्च किए जाएँ तो वह खुशी दीर्घकाल तक बनी रहती है।


दीपावली हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का संदेश देती है, और इस प्रकाश में हम सभी को साथ लेकर चलना चाहिए। पटाखों से न केवल हमारा पैसा बर्बाद होता है, बल्कि यह पर्यावरण और हमारे स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है।


इसलिए, क्यों न हम सभी इस बार दीपावली को एक नए दृष्टिकोण के साथ मनाएँ? क्यों न हम पटाखों की जगह अपने पैसों का सही उपयोग करें और किसी की मुस्कान का कारण बनें? दीपावली का असली संदेश तभी पूरा होगा, जब हम दूसरों के साथ खुशियाँ बाँटेंगे और अपने समाज में सकारात्मक बदलाव लाएँगे।


अगली बार जब दीपावली आए, तो याद रखें रवि की यह कहानी और संकल्प लें कि हम इस त्यौहार को समझदारी से और समाज के हित में मनाएँगे। दीपावली की खुशी सिर्फ रोशनी में नहीं, बल्कि उन चेहरों की मुस्कान में भी है, जो हमारे छोटे से योगदान से खुश हो जाते हैं।

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